ट्रम्प ने Google, Microsoft, Apple, Amazon जैसी कंपनियों को चेतावनी दी कि उन्हें अब विदेशों में—विशेष रूप से भारत में—तकनीकी कर्मियों की भर्ती बंद करनी चाहिए और ‘America First’ नीति के तहत अमेरिकी रोजगार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि आप अमेरिका को प्राथमिकता दें। बस यही हम आपसे चाहते हैं।”
उनका भाषण इस प्रकार था कि “अमेरिकी स्वतंत्रता का लाभ उठाकर कंपनियों ने चीन में कारखाने बनाए, भारत में कर्मियों को भर्ती किया और आयरलैंड में मुनाफा जमा किया… अब वह दिन अब खत्म हो गए हैं।”
ट्रम्प ने तीन नए कार्यकारी आदेश (Executive Orders) भी जारी किए, जिनका उद्देश्य अमेरिकी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सेक्टर को मजबूत करना है।
1. *“Winning the Race”* योजना के तहत AI इन्फ्रास्ट्रक्चर को तेज़ी से विकसित करने की पहल।
2. उन AI प्रणालियों को राजनीतिक तटस्थ बनाना जो संघीय वित्तपोषण से निर्मित होती हैं—उनमें “वोक” (woke) तकनीकों का समर्थन नहीं होगा।
3. अमेरिकी AI उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देना और विदेशी प्लेटफ़ॉर्म/सप्लाई चेन पर निर्भरता कम करना।
टेक उद्योग का मत है कि ट्रम्प की टिप्पणियाँ सुनने में कड़वी हो सकती हैं, लेकिन हकीकत यह है कि अमेरिका में पर्याप्त तकनीकी इंजीनियर नहीं हैं और भारतीय इंजीनियर किफायती, कुशल और बड़ी संख्या में उपलब्ध हैं। इसलिए FAANG जैसी कंपनियां भारत में भर्ती जारी रख सकती हैं।
विश्लेषकों का मानना है कि ट्रम्प तो सिर्फ सुझाव दे सकते हैं; टेक कंपनियों पर सीधे प्रभाव डाल सकने वाला कोई कानूनी बदलाव अभी तक नहीं हुआ है। लेकिन उनकी इस “देशीकरण” नीति से वैश्विक आईटी पेशेवरों, खासकर भारतीयों की नौकरी संभावनाओं में अनिश्चितता बढ़ सकती है।
नोट: ट्रम्प ने अभी तक H‑1B वीजा कार्यक्रम या आउटसोर्सिंग पॉलिसी में कोई औपचारिक परिवर्तन की घोषणा नहीं की है, हालांकि उनकी टिप्पणियाँ स्पष्ट रूप से संकेत देती हैं कि भविष्य में यथार्थ परिवर्तन संभवता है।
कुल मिलाकर, ट्रम्प की AI समिट में यह घोषणा अमेरिकी टेक क्षेत्र में ‘रोजगारों का राशन’ भारत जैसी देशों के बजाय अमेरिकी नागरिकों के लिए सुरक्षित करने की दिशा में है। हालांकि कंपनियों के लिए यथार्थ आर्थिक और मानव संसाधन चुनौतियाँ इस धारणा को पूरी तरह लागू होने से रोक सकती
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