चुनाव आयोग की छह प्रमुख दलीलें इस प्रकार हैं:
1. कानूनी अधिकार क्षेत्र: आयोग ने कहा कि मतदाता सूची को संशोधित करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 324 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के तहत आयोग को प्राप्त है। यह प्रक्रिया पूरी तरह से वैधानिक है।
2. वार्षिक पुनरीक्षण प्रक्रिया: आयोग ने बताया कि बिहार में मतदाता सूची का संशोधन वार्षिक पुनरीक्षण प्रक्रिया के तहत किया गया है, जो पूरे देश में लागू होती है। यह एक नियमित प्रक्रिया है और इसमें कोई असामान्यता नहीं है।
3. पारदर्शिता: आयोग ने दलील दी कि संशोधन प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी रही है। इसमें जन-सुनवाई, शिकायत दर्ज कराने की सुविधा और ड्राफ्ट सूची के प्रकाशन जैसी प्रक्रियाएं शामिल हैं।
4. राजनीतिक हस्तक्षेप से स्वतंत्र: आयोग ने कोर्ट को आश्वस्त किया कि यह प्रक्रिया पूरी तरह से निष्पक्ष रही है और किसी भी राजनीतिक दबाव या हस्तक्षेप के बिना संचालित की गई है।
5. डिजिटल सत्यापन और आधार लिंकिंग: आयोग ने बताया कि संशोधन में डिजिटल तकनीक और आधार कार्ड से लिंकिंग जैसी आधुनिक विधियों का उपयोग किया गया है, जिससे फर्जीवाड़े की संभावना कम हुई है।
6. कोर्ट के हस्तक्षेप की सीमाएं: आयोग ने कहा कि चूंकि यह एक नीति-संबंधी निर्णय है, इसलिए इसमें न्यायिक हस्तक्षेप बहुत सीमित होना चाहिए।
अब सुप्रीम कोर्ट इस पर अंतिम निर्णय लेगा कि क्या चुनाव आयोग की यह प्रक्रिया संविधान और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के अनुरूप है या नहीं।
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