जालंधर (बीआस पिंड), 14 जुलाई 2025 — दुनिया के सबसे उम्रदराज मैराथन धावक, 114 वर्षीय फौजा सिंह का आज दोपहर लगभग 3:30 बजे एक सड़क हादसे में निधन हो गया। यह दुःखद घटना उनके पैतृक गाँव बीआस पिंड में तब हुई जब वे अपने रोज़मर्रा के सैर के दौरान सड़क पार कर रहे थे और एक अज्ञात वाहन ने उन्हें टक्कर मार दी ।परिवार और समाज में श्रद्धा और रोष की लहर दौड़ गई। पंजाब के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया ने दुख जाहिर करते हुए कहा कि फौजा सिंह नशामुक्ति के अभियान सहित कई सामाजिक पहलों का हिस्सा थे, और उनका जाना पंजाब के लिए बड़ी क्षति है ।

जीवन यात्रा: खुद से प्रेरित संघर्ष की मिसाल

शुरुआत — 1 अप्रैल 1911 को ब्रिटिश भारत के पंजाब में जन्मे फौजा सिंह को शुरुआत में चलने-फिरने में देरी थी। बचपन में वे बेहद दुर्बल थे और पांच साल तक चल नहीं पाए—जिससे उन्होंने जीवन की चुनौतियों को पहले से ही करीब से जाना ।दुख और वीरता — 1994 में अपने बेटे की दर्दनाक मौत के बाद वे धार्मिक और मानसिक संघर्ष से गुज़रे। 89 वर्ष की उम्र में उन्होंने दौड़ के माध्यम से अपने आत्मबल को पुनः जागृत किया।

अद्वितीय उपलब्धियाँ

2000 में अपने पहले लंदन मैराथन में 6 घंटे 54 मिनट में पूरा किया।100 वर्ष की उम्र में (2011) टोरंटो मैराथन में पहले शताब्दी धावक बने ।ओलंपिक मशाल धारण, Adidas का "Nothing Is Impossible" अभियान तथा ब्रिटिश एम्पायर मेडल से सम्मानित । साधारण जीवन शैली — शाकाहारी भोजन, योग और ध्यान, संयमित जीवन—उनकी दिनचर्या की आत्मा थी

 संक्षिप्त स्मृति: दौड़ का सच्चा अर्थ

फौजा सिंह ने कभी दौड़ को प्रतिस्पर्धा नहीं बनने दिया। उनके शब्दों में -“मैं दौड़ता हूँ क्योंकि यह मुझे खुश करता है, रिकॉर्ड के लिए नहीं—मगर इससे जो प्रेरणा मिलती है, वह किसी से कम नहीं।” 

उनके फिनिश के करीब स्थित अंतिम छह मील में कहे गए:

“मैं दौड़ते समय खुद ईश्वर से बात करता हूँ।”उनका जीवन हमें सिखाता है—दुःख, अकेलापन और उम्र को भी जीत में बदला जा सकता है।

अंतिम यात्रा

उनकी अंत्येष्टि मंगलवार सुबह उनके गाँव बीआस पिंड में आयोजित होगी। परिवार ने जनता से अनुरोध किया है कि वह उनके अनुशासित और स्वस्थ जीवन को अपनाकर ही उन्हें श्रद्धांजलि दें।फौजा सिंह एक धावक नहीं थे—वे एक प्रेरणा, एक जीवन दृष्टान्त थे, जो हर दिल में दौड़ने की जज़्बा जगा गए।





















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