उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले के धराली गाँव में मंगलवार (5 अगस्त 2025) को आई भयंकर फ्लैश फ्लड और मलबा दुर्घटना ने इलाके को भारी तबाही से उधेड़ कर रख दिया। यह क्षेत्र भगीरथी इको‑संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) के अंतर्गत आता है, जिसे वर्ष 2012 में संवेदनशील पारिस्थितिकी और गंगोत्री से उत्तरकाशी तक की घाटी की रक्षा हेतु घोषित किया गया था। विशेषज्ञों का कहना है कि नदी के बाढ़‑मैदान पर हो रहे अवैध निर्माण ने इस प्राकृतिक घटना को और विनाशकारी बनाया हो सकता है ।
भगीरथी ESZ की निगरानी समिति के स्वतंत्र सदस्यों जैसे ‘गंगा अह्वान’ से मलिका भानोट ने पिछले साल से विभिन्न अवैध और अनियमित निर्माणों की ओर ध्यान आकर्षित किया था। इनमें झाला गाँव में हेलिपैड का निर्माण और उत्तरकाशी के पास गंगा के तट पर मलिन ढंग से बने बहुमंज़िला होटल शामिल हैं, जो ESZ नियमों का साफ उल्लंघन हैं ।
विशेषज्ञों के अनुसार, इन विकास गतिविधियों ने न केवल पारिस्थितिकी को नुकसान पहुँचाया है, बल्कि जब प्राकृतिक आपदा आई तो नदी में पानी, मलबा और कीचड़ की धारा अधिक तेज़ी से बह निकली। यही कारण है कि एक प्राकृतिक घटना ने विनाशकारी रूप लिया ।
इसके अतिरिक्त, इस क्षेत्र में केंद्र सरकार की प्रमुख परियोजना ‘चर धाम ऑल‑वेदर हाईवे’ के चलते सड़कों में चौड़ीकरण का कार्यक्रम चल रहा है। बॉर्डर रोड़्स ऑर्गनाइज़ेशन (BRO) ने दावा किया था कि इस कार्य को Environmental Impact Assessment की आवश्यकता नहीं है, जो कि विशेषज्ञों के लिए बेहद चिंतनीय है। 2023 में सिल्क्यारा सुरंग हादसे जैसी घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया था कि पर्यावरणीय सावधानियों की अनदेखी बेहद खतरनाक हो सकती है ।
दाहिने किनारे के बाढ़‑मैदान पर अनियमित निर्माणों और सड़क विस्तार के दुष्परिणाम आज सामने हैं। प्राकृतिक आपदा के रूप में जो कुछ हुआ, उसमें मानव निर्मित गैर‑बराबरी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। यह घटना एक स्पष्ट चेतावनी है कि इको‑संवेदनशील क्षेत्र की घोषणा सिर्फ कागज पर सीमित न रह जाए उसका प्रभावी कार्यान्वयन होना बेहद आवश्यक है, अन्यथा भविष्य में ऐसी विपत्तियाँ दोहराए जाने की संभावना बनी रहेगी।
0 टिप्पणियाँ