पिछले कुछ महीनों में कोलकाता की नाइटलाइफ़ पर एक चिंताजनक सवाल खड़ा हो गया है: क्या शहर की रातें अब उतनी सुरक्षित नहीं रहीं जितना पहले हुआ करती थीं? खासकर सॉल्ट लेक और भवानीपुर इलाके में रह रहे युवा और पार्टी‑प्रेमी अपने अनुभव साझा कर रहे हैं कि उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी पहले से कहीं अधिक दूसरों पर निर्भर हो गई है।
सॉल्ट लेक की जल‹चर स्थित एक कैफ़े में संगीत की धुन पर थिरकने आईं त्रिनपा सरकार में नौकरी करने वाली 27 वर्षीय प्रिया सिंह कहती हैं, “मैं अब रात को अकेले बाहर जाना खतरे में महसूस करती हूँ। कभी-कभी ऐसा लगता है कि सिर्फ दोस्त या किसी समूह में रहना ही हमें सुरक्षित रख सकता है।”
स्थानीय बार और क्लब संचालक भी इस बदलते माहौल से चिंतित हैं। भवानीपुर के एक क्लब के मैनेजर राहुल घोष बताते हैं, “हमारे यहां आने वाले ग्राहक शर्मनाक घटनाओं से डरे हुए हैं। उन्होंने हमें साफ कह दिया है कि सुरक्षा बेहतर होनी चाहिए – जैसे बाहर गार्ड, फ़्लडलाइट, और एम्बुलेंस जैसी सुविधाएँ। ये मांगें सिर्फ क्लब नहीं, बल्कि ग्राहक सुरक्षा के प्रति हमारी जिम्मेदारी की तरफ संकेत है।”
पुलिस उपायों में थोड़ी वृद्धि जरूर हुई है – इलाके में रूटीन गश्त बढ़ा दी गई है, साथ ही कुछ क्लबों के बाहर अतिरिक्त पुलिस पोस्ट तैनात की गई है। लेकिन स्थानीय निवासी और युवा अब भी सुविधाओं से असंतुष्ट हैं। एक छात्रा कहती हैं, “बार-बार पुलिस गश्त से कोई फर्क नहीं पड़ता अगर त्वरित प्रतिक्रिया के इंजन नहीं होंगे। रात के समय एम्बुलेंस और इमरजेंसी फोर्स की उपस्थिति जरूरी हो गई है।”
वहीं पुलिस लगातार यह दावा करती रही है कि शहर सुरक्षित है और नाइटलाइफ़ स्थल पर सुरक्षा बनाए रखने को लेकर सतर्कता बरती जा रही है। कोलकाता पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी का कहना है, “हमने सॉल्ट लेक और भवानीपुर में गश्त बढ़ा दी है, साथ ही बार-प्रमुख आयोजनों के दौरान सुरक्षा इंतज़ाम भी मजबूत किए गए हैं।”
फिर भी सच्चाई ये है कि बदलाव की गूँज युवाओं की आवाज़ों में साफ सुनाई दे रही है। “पार्टी का मज़ा तभी है जब हम सुरक्षित महसूस करें—वरना ये सब औपचारिकताओं से ज्यादा कुछ नहीं।” यह कहती है 24 वर्षीय संगीतकार अनुष्का मेहता, जो रोज़ रात को रेस्तरां‑बार के लिए जाती हैं।
इस चुनौतीपूर्ण दौर में निवासियों और रात के व्यवसायों के बीच संतुलन बनाये रखना बेहद ज़रूरी हो गया है। भले ही पुलिस गश्त बढ़ा रही हो, लेकिन युवा वर्ग की बढ़ती चिंताएँ बता रही हैं कि पुल-आधारित उपाय पर्याप्त नहीं हैं। एक समग्र प्रतिक्रिया बनाम सजग जनता—यह कोलकाता की नाइटलाइफ़ की नई वास्तविकता हो सकती है।
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