नई दिल्ली: टेक्नोलॉजी की दुनिया में जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) ने कई क्षेत्रों में क्रांति ला दी है, वहीं अब यह रचनात्मक उद्योग यानी मनोरंजन जगत में भी अपने पांव तेजी से फैला रहा है। लेकिन सवाल यह है की क्या AI रचनात्मकता को खत्म कर देगा? क्या यह कलाकारों, लेखकों और तकनीशियनों के लिए बड़ा संकट बन चुका है?
बॉलीवुड हो या हॉलीवुड, अब निर्माता और स्टूडियो AI टूल्स का इस्तेमाल स्क्रिप्ट लिखने, एक्टर्स के फेस क्लोन बनाने, और यहां तक कि सॉन्ग कम्पोजिशन के लिए भी कर रहे हैं। इससे कलाकारों की मौलिकता और मेहनत पर प्रश्नचिह्न खड़े हो रहे हैं। इंडस्ट्री से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि AI रचनात्मकता को सपोर्ट करने के बजाय धीरे-धीरे उसे रिप्लेस करने की दिशा में बढ़ रहा
विशेषज्ञों की चेतावनी: “AI से नहीं रुक रहा है कॉपी कल्चर”
डायरेक्टर और स्क्रीनराइटर अमित खन्ना का कहना है, “AI भले ही एक टेक्नोलॉजी हो, लेकिन यह मानव संवेदनाओं को नहीं समझ सकता। हम जो महसूस करते हैं, जो जीते हैं उसे कोई मशीन नहीं दोहरा सकती। लेकिन अब कई प्लेटफॉर्म्स पर AI-जनरेटेड कंटेंट दिखाए जा रहे हैं, जो मौलिकता को खत्म कर रहे है।
कलाकारों की रोज़ी-रोटी पर खतरा
AI के कारण कई स्क्रिप्ट राइटर, वॉइस आर्टिस्ट्स और यहां तक कि स्टोरीबोर्ड आर्टिस्ट भी बेरोज़गारी की कगार पर हैं। बड़े प्रोडक्शन हाउस समय और पैसा बचाने के लिए AI टूल्स का सहारा ले रहे हैं, लेकिन इससे हजारों क्रिएटिव लोगों का भविष्य अधर में लटक गया
कानून और नैतिकता पर भी उठ रहे सवाल
AI से जुड़े कॉपीराइट और क्रेडिट को लेकर अब तक कोई स्पष्ट नियम नहीं है। अगर कोई स्क्रिप्ट AI ने जनरेट की, तो उसका लेखक कौन? और अगर किसी कलाकार का चेहरा या आवाज़ बिना इजाज़त के इस्तेमाल की गई, तो क्या वह नैतिक है?
दर्शकों का भरोसा भी हो सकता है कम
AI से बना कंटेंट भले ही तेज़ी से बन जाए, लेकिन उसमें भावनात्मक गहराई की कमी होती है। दर्शक जुड़ाव चाहते हैं और यह जुड़ाव इंसान से ही मुमकिन है। अगर कंटेंट का मानवीय पहलू खो गया, तो शायद ऑडियंस भी धीरे-धीरे उस प्लेटफॉर्म से दूर हो जाएगी।
AI एक उपयोगी उपकरण हो सकता है, लेकिन अगर इसका सही दिशा में प्रयोग न किया जाए, तो यह हमारे समाज और संस्कृति की रचनात्मक नींव को कमजोर कर सकता है। ज़रूरत है संतुलन बनाने की जहाँ तकनीक और इंसान एक साथ चलें, न कि एक-दूसरे की जगह लें।
0 टिप्पणियाँ