MiG-21 को 1963 में भारतीय वायुसेना में शामिल किया गया था और यह देश का पहला सुपरसोनिक लड़ाकू विमान बना। इसके आने से भारत की वायुशक्ति में क्रांतिकारी बदलाव आया और कई दशक तक यह वायुसेना की रीढ़ बना रहा। इस विमान ने 1965, 1971 और 1999 के कारगिल युद्ध समेत अनेक सैन्य अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
हालांकि, समय के साथ इसकी तकनीक पुरानी हो गई और इसे "फ्लाइंग कॉफिन" जैसे उपनाम भी मिलने लगे क्योंकि इसमें कई दुर्घटनाएं हुईं। इसके बावजूद MiG-21 ने वर्षों तक देश की सेवा की और अनेक युवा पायलटों को उड़ान भरना सिखाया।
भारतीय वायुसेना ने बताया कि अंतिम स्क्वाड्रन - नंबर 4 स्क्वाड्रन "ओरिस" - जो राजस्थान के उत्तरलाई एयरबेस पर तैनात है, वह 30 सितंबर 2025 को आधिकारिक रूप से MiG-21 का संचालन बंद कर देगी। इससे पहले 19 सितंबर को एक भव्य समारोह में इसे विदाई दी जाएगी।
MiG-21 की सेवा समाप्ति भारतीय वायुसेना के आधुनिकीकरण की दिशा में एक और कदम है। अब इसकी जगह अधिक आधुनिक और बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमान जैसे राफेल, तेजस और सुखोई-30MKI ले रहे हैं।
MiG-21 सिर्फ एक विमान नहीं बल्कि भारतीय रक्षा इतिहास का एक प्रतीक बन चुका है। इसके रिटायरमेंट के साथ एक युग का अंत होगा, लेकिन इसकी विरासत हमेशा याद रखी जाएगी।
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