स्थानीय प्रशासन और आपदा प्रबंधन दल तुरंत राहत एवं बचाव कार्यों में जुट गए हैं। सेना और एनडीआरएफ की टीमें भी मौके पर भेज दी गई हैं। जिला प्रशासन के अनुसार, अब तक कई लोगों के लापता होने की सूचना है, जबकि कुछ घायल व्यक्तियों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
बादल फटने से क्षेत्र में नदियों और नालों का जलस्तर अचानक बढ़ गया, जिससे आसपास के गांवों में पानी घुस गया। प्रभावित इलाकों में सड़कों पर मलबा भर गया है, जिससे यातायात पूरी तरह बाधित हो गया है। बिजली और संचार सेवाओं पर भी असर पड़ा है।
मुख्यमंत्री ने घटना पर गहरा शोक व्यक्त किया है और प्रभावित परिवारों को हरसंभव सहायता प्रदान करने का आश्वासन दिया है। उन्होंने अधिकारियों को राहत कार्य तेज करने और जरूरतमंदों को तुरंत सहायता पहुंचाने के निर्देश दिए हैं।
स्थानीय लोगों के अनुसार, ऐसी घटनाएं मानसून के दौरान अक्सर होती हैं, लेकिन इस बार नुकसान अधिक है। प्रशासन ने नागरिकों से सतर्क रहने और जोखिम वाले क्षेत्रों से दूर रहने की अपील की है।
वर्तमान में राहत शिविर स्थापित किए गए हैं और प्रभावित लोगों को वहां पहुंचाया जा रहा है। मलबे में दबे लोगों की तलाश जारी है। प्रशासन ने लोगों को अफवाहों से बचने और केवल आधिकारिक जानकारी पर भरोसा करने की सलाह दी है।
यह घटना उत्तराखंड में मानसून के दौरान प्राकृतिक आपदाओं के बढ़ते खतरे की ओर एक बार फिर इशारा करती है, जहां पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन और बादल फटने जैसी घटनाएं आम होती जा रही हैं।
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