नई दिल्ली / मुम्बई, 4 अगस्त 2025 – 2013 में रिलीज़ हुई फ़िल्म रांझना की तमिल संस्करण अंबिकापथ्य को 1 अगस्त, 2025 से सिनेमाघरों में फिर प्रदर्शित किया गया। इस नए संस्करण का क्लाइमैक्स कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) द्वारा बदला गया है, जिसमें प्रमुख पात्र कुन्दन (धनुष) जीवित बच जाता है जबकि मूल में उसकी मृत्यु होती है ।


धनुष की प्रतिक्रिया: “पूरी तरह से परेशान हूँ”

धनुष ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X (पूर्व Twitter) पर एक स्पष्ट संदेश जारी किया, जिसमें उन्होंने लिखा:

उन्होंने आगे कहा कि AI का इस तरह फिल्म की कथा में हस्तक्षेप करना “कला और कलाकारों दोनों के लिए गहराई से चिंताजनक प्रवृत्ति” है, जो सिनेमा की कथा और विरासत को खतरे में डाल सकता है। उन्होंने सख्त नियमों व दिशानिर्देशों की आवश्यकता पर बल दिया ।

आनंद एल राय का निष्कर्ष: “निडर व बेबुनियाद बदलाव”

Raanjhanaa के निर्देशक और सह-प्रोड्यूसर आनंद एल राय ने भी फिल्म के इस AI‑संसोधित संस्करण की सिरे से निंदा की है। उन्होंने इसे “unauthorized,” “deeply upsetting,” और एक “reckless takeover” करार दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि न तो उन्हें न ही फिल्म की मूल टीम को इस बारे में जानकारी दी गई, और न ही उनसे सहमति ली गई ।

राय ने कहा, “यह AI‑समर्थित बदलाव फिल्म की भावनात्मक विरासत को धोखा देता है,” और साथ ही भविष्य के लिए स्पष्ट निर्देशों और नैतिक सीमाओं की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया ।


दिग्गजों की प्रतिक्रिया व बहस का विस्तार

फिल्म उद्योग के अन्य दिग्गजों जैसे नीरज पांडे और कनिका ढिल्लोन ने भी इस AI‑संपादन की कठोर आलोचना की है। उनमें से कई ने इसे “utterly disrespectful” बताते हुए कहा कि इससे फिल्म की मूल रचना और टोन प्रभावित हुए हैं ।

Eros International (उत्पादक कंपनी) ने इस बदलाव को एक “creative reimagining” बताया है लेकिन अधिकांश फिल्म निर्माताओं ने इसे नैतिकता और रचनात्मक स्वायत्तता की हानि बताया है ।

दर्शकों की प्रतिक्रिया: विभाजित भावनाएँ

सोशल मीडिया पर इस AI‑बदले क्लाइमैक्स को लेकर दर्शकों की प्रतिक्रियाएँ मिश्रित हैं: कुछ इसे “healing” अनुभव मान रहे है ख़ुश हैं कि कुन्दन जिंदा बच जाता है तो कुछ यूज़र इसे “फिल्म की आत्मा को मिटा डालने वाला” बदलाव बता रहे हैं ।

निष्कर्ष: AI का सीमित व जिम्मेदार उपयोग हो

इस पूरे विवाद ने स्पष्ट कर दिया है कि AI तकनीक से कला को पीछे से संपादित करना बिना रचनाकारों की अनुमति के सृजनात्मक स्वतंत्रता और नैतिक मूल्यों के लिए गंभीर आशंका प्रस्तुत करता है। इस घटना ने फिल्म‑उद्योग में AI के प्रभुत्व को सीमित करने, रचनाकारों की सहमति सुनिश्चित करने, और नैतिक दिशानिर्देश बनाने की मांग मजबूत कर दी है।

यह मुद्दा अब केवल एक फिल्म की नहीं, बल्कि उस व्यापक प्रश्न का प्रतीक बन गया है: क्या तकनीक भविष्य की सुविधा है या अतीत की रचनात्मकता को बदलने का जोखिम?

समग्रतः, धनुष व आनंद एल राय का विरोध इस बात पर प्रकाश डालता है कि कला की आत्मा और सच्ची कथात्मक भावना को मशीन द्वारा बदलना स्वीकार्य नहीं जब तक कि उसके पीछे पूरी पारदर्शिता, अनुमति और रचनात्मक सम्मान न हो।