कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और केरल के प्रभावशाली चेहरे के. मुरलीधरन ने रविवार, 20 जुलाई 2025 को एक संक्षिप्त लेकिन करारे बयान में कहा कि शशि थरूर अब “हमारे बीच नहीं रहे”। उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि जब तक थरूर अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और देशहित में दिए गए हालिया बयानों पर अपना रुख नहीं बदलते, तब तक उन्हें तिरुवनंतपुरम में होने वाले किसी भी कांग्रेस कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं किया जाएगा ।

मुरलीधरन मिस्टर थरूर के रुख से बेहद नाराज दिखाई दिए। उन्होंने कहा कि थरूर न केवल पार्टी के हितों के खिलाफ रवैया अपना रहे हैं, बल्कि उनकी सोच कांग्रेस की विचारधारा से भी अलग होती जा रही है। मुरलीधरन ने यह उम्मीद जाहिर की कि राष्ट्रीय नेतृत्व इस मामले में उचित कार्रवाई करेगा। उन्होंने यह भी कहा:

“जब तक उन्होंने अपना रुख नहीं बदला, उन्हें तिरुवनंतपुरम के किसी भी कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं किया जाएगा। वे हमारे साथ नहीं हैं, इसलिए कोई बहिष्कार की बात ही नहीं है।” 

यह बयान उस समय आया जब थरूर ने कोच्चि में एक कार्यक्रम में बोले थे कि “देश सबसे पहले आता है। राजनीतिक दल केवल देश को बेहतर बनाने का माध्यम हैं।” उन्होंने जवाहरलाल नेहरू का प्रसिद्ध उद्धरण याद दिलाते हुए कहा, “जिसका भारत मर जाए, वह जीए कौन?” । इस टिप्पणी ने पार्टी में खिंचाई बढ़ा दी—कुछ नेताओं ने इसे असंगति भरा बताया, जबकि थरूर ने इसे देशहित का “प्रथम दृष्टिकोण” बताया।

थरूर को केवल पार्टी के आंतरिक कार्यक्रमों से ही दूर नहीं रखा जा रहा, बल्कि उनकी कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की भूमिका पर भी सवाल उठे हैं। केरल में पार्टी की कार्यशैली और सोशल मीडिया पर थरूर की सक्रियता के बीच संतुलन बिगड़ता दिख रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार, मुरलीधरन के बयान से साफ है कि “यदि थरूर अपना रुख स्पष्ट नहीं करेंगे, तो पार्टी उन्हें गंभीरता से नहीं लेगी।” 

इस राजनीतिक विवाद का पृष्ठभूमि में recent Monsoon Session और ‘ऑपरेशन सिंडोर’ जैसे घटनाक्रम हैं, जहां थरूर ने भारत की विदेश नीति और सुरक्षा मामले में केंद्र सरकार का पक्ष लिया। लेकिन थरूर के इस रुख से कांग्रेस में कुछ सदस्यों के बीच असहमति उपजी—कहा जा रहा है कि “वे पार्टी की सीमाओं से बाहर जा रहे हैं।” 

मंथन: क्या है अंततः मायने?

शशि थरूर की लोकप्रियता और वकालत की शानदार प्रतिष्ठा को देखते हुए, पार्टी में इस तरह का विभाजन असामान्य नहीं लेकिन चिंताजनक है। राष्ट्रीय नेतृत्व अब तय करेगा कि क्या थरूर को पूरी तरह पार्टी से अलग माना जाएगा, या फिर वाद-विवाद के बाद रचनात्मक समन्वय कायम रहेगा।

कुल मिलाकर यह संघर्ष सिर्फ एक बयान का नहीं है बल्कि कांग्रेस की वर्तमान राजनीतिक दिशा, लोकतांत्रिक व्यवहार और राष्ट्रीय हितों को लेकर गहराई से सोचने का संकेत है।